PURAANIC SUBJECT INDEX (From Mahaan to Mlechchha ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Mooshaka / Muushaka / rat, Muushala / Mooshala / pestle, Mrikandu, Mriga / deer etc. are given here. मूली मत्स्य ११४.३१(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), २१८.२३(शतमूली व शङ्खमूली : नृप द्वारा संग्रहणीय ओषधियों में से २), कथासरित् ३.६.१४३(सुन्दरक द्वारा शाकवाट से उखाडी गई मूलियों द्वारा भूख शान्ति ) mooli/muuli/ muli
मूषक अग्नि २००(मूषिका द्वारा दीप प्रबोधन से राजकुमारी ललिता बनना), गणेश २.१३४.८(वामदेव द्वारा क्रौञ्च गन्धर्व को मूषक होने का शाप, मूषक का गणेश का वाहन बनना), गरुड १.२१७.१८(यव धान्य हरण के कारण मूषक योनि की प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ४.३.१८(दीप प्रबोधन से मूषक को वैकुण्ठ की प्राप्ति की कथा), ६.३०.७५(दीप प्रबोधन से मूषिका का रूप सुन्दरी बनना), ७.२५.७३(पवित्र ब्राह्मण द्वारा मूषक का घात, तुलसी से मुक्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८७(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.४४.६९(मूषकवाहन : ५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मार्कण्डेय १५.९(दुष्कृत्य के फलस्वरूप मूषक योनि प्राप्ति का उल्लेख), १५.२२(अन्न हरण से मूषक योनि की प्राप्ति का उल्लेख), वायु ४५.१२५(मूषिक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७.२३ (मूषिका : वर्तिका हरण के प्रयत्न से दीपक के प्रज्वलित हो जाने पर मूषिका का मृत्यु - उपरान्त विदर्भराज - कन्या बनना), स्कन्द २.४.७टीका(मूषिका की पर - दीप प्रबोधन से मुक्ति की कथा), २.४.१२.५७(कार्तिक मास के माहात्म्य श्रवण से मूषक की मुक्ति का उल्लेख), २.७.२२.७२(अन्ध कूप में काल रूप मूषक द्वारा वंश रूप दूर्वा का छेदन), ५.३.१५९.२०(धान्यहर्त्ता को मूषक योनि प्राप्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.३२(मन की मूषक से उपमा), १.२२.२५(जरा मार्जारी, यौवनआखु), ६.१.७.२१(यौवनआखु, जरा मार्जारी), महाभारत उद्योग १६०.१६(दुर्योधन द्वारा तप का ढोंग करने वाले मूषक - भक्षक मार्जार के आख्यान का वाचन), शान्ति १३८.१८(मूषक द्वारा अपने शत्रुओं मार्जार, नकुल व उलूक से मुक्ति पाने की कथा), लक्ष्मीनारायण २.२६.८९(आखु रूप पुरुष के लक्षण : वैभव का उपभोग न करने वाले), ३.५४.१७(लीलावती द्वारा मूषिका के अपत्यों का माता से वियोजन, मूषिका के शाप से लीलावती का माता - पिता से वियोग), ३.९२.८८(मूषिका के चरित्र धर्म का उल्लेख), ४.७०.७२(चोर का मृत्यु - पश्चात् मूषक बनना, कथा के प्रसाद के उच्छिष्ट भक्षण से मुक्ति का कथन), कथासरित् १.६.३८(मृत मूषक से वित्त वृद्धि की कथा), ६.७.१०७(एक ही वट वृक्ष पर निवास करने वाले उलूक, नकुल, मूषक व मार्जार की कथा), १०.४.२३९(आखु/मूषक द्वारा लौह तुला भक्षण की कथा ) mooshaka/ muushaka/ mushaka
मुसल गणेश २.६४.४(देवान्तक असुर - सेनानी, महिमा आदि सिद्धियों से युद्ध), गरुड १.१०७.३३ ( मृत पुरुष की देह के पार्श्व में उलूखल व पृष्ठ में मुसल रखने का विधान ), नारद १.६६.९२(मुसली विष्णु की शक्ति विलासिनी का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.२८(गङ्गा में मौसल स्नान मात्र के फल का कथन), वामन ९०.३७(मुसलाकृष्टदानव : तल नामक लोक में विष्णु का नाम?), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.१४(बलराम की मुसल के मृत्यु का प्रतीक होने का उल्लेख), महाभारत अनुशासन १४.९६(४५.८१)(अनसूया द्वारा अत्रि मुनि के भय से मुसलों में सोने का उल्लेख ), द्र. मूषल musala मूषल अग्नि ७७.१७(मूसल पूजा विधि), गरुड १.१०७.३४(अग्निहोत्र का एक उपकरण, प्रवास काल में अग्निहोत्री की मृत्यु हो जाने पर पुन: गृह में अग्निहोत्री के कुशमय शरीर का अग्निदाह, कुशमय शरीर के विभिन्न अङ्गों पर अग्निहोत्र के उपकरणों की स्थापना के अन्तर्गत पीठ की ओर मुसल की स्थापना), पद्म ६.२५२.६२(मूषल के संदर्भ में साम्ब द्वारा उदर पर मूसल धारण की कथा, मूसल द्वारा यादवों के संहार का वृत्तान्त), ब्रह्म १.१०१(स्त्री वेश धारी साम्ब से मुसल की उत्पत्ति की कथा), भागवत ११.१(स्त्री वेश धारी साम्ब से मुसल की उत्पत्ति, मुसल के अनेक रूप होना), मार्कण्डेय ११६.४९/११३.४९(कुजृम्भ असुर के आधीन सुनन्दा नामक मूसल का वृत्तान्त, मुदावती द्वारा स्पर्श से मूसल का निष्प्रभावी होना), वामन ६८.४४(कुजम्भ द्वारा मुसल से नन्दी पर प्रहार, नन्दी द्वारा मुसल से ही कुजम्भ का वध), विष्णु २.५.१८(शेषनाग के स्वरूप में हाथों में लाङ्गल व मुसल धारण का उल्लेख - लाङ्गलासक्तहस्ताग्रो बिभ्रन्मुसलमुत्तमम्), ५.३३.३०(बलराम द्वारा लाङ्गल से आकृष्ट करके मुसल से प्रहार करने का उल्लेख - आकृष्य लांगलाग्रेण मुसलेनाशु ताडितम्), ५.३७(साम्ब से मूसल की उत्पत्ति व यादवों के विनाश की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.६(मुसली विष्णु से उदर की रक्षा की प्रार्थना - उदरं मुसली पातु पृष्ठं पातु च लाङ्गली ), शिव ५.२.१८(अत्रि - भार्या अनसूया द्वारा मुशलों? में निराहार रहकर शिव कृपा से दत्तात्रेय आदि पुत्रों की प्राप्ति), स्कन्द २.६.१.३३(कृष्ण द्वारा देवादिकों को मौशल मार्ग से स्वाधिकारों में लगाना?), ५.२.६३.९(मुशल अस्त्र के प्रभाव से कुजम्भ दैत्य का अत्याचार, मुशल निवारण हेतु राजा विदूरथ द्वारा धनुसाहस्र तीर्थ में दिव्य धनुष की प्राप्ति, कुजम्भ का वध), ५.२.८२.३९(दक्षयज्ञ में भद्रकाली द्वारा मुशल से अष्ट वसुओं पर प्रहार), ७.४.१७.२४(मुशली : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत नैर्ऋत दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१७६.४३(ज्योतिष के योगों में से एक), कथासरित् १२.१८.२८(मुसल की आवाज सुनते ही रानी के हाथों में काले धब्बे होना ) mooshala/muushala/ mushala
मृकण्डु अग्नि २०.१०(विधाता - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता, भृगु वंश), नारद १.४.५०(मृकण्डु द्वारा तप, विष्णु की स्तुति, विष्णु द्वारा पुत्र रूप में जन्म लेने पर मृकण्डु को वरदान), ब्रह्माण्ड १.२.११.६(विधाता व धाता की पत्नियों आयति व नियति से प्राण व मृकण्डु के जन्म तथा मनस्विनी व मृकण्डु से मार्कण्डेय तथा धूम्र पत्नी से वेदशिरा के जन्म का कथन), भागवत ४.१.४४(धाता व आयति - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता), वायु २८.५(विधाता व धाता की पत्नियों आयति व नियति से पाण्डु व मृकण्डु पुत्रों के जन्म तथा मृकण्डु की पत्नियों मनस्विनी से मार्कण्डेय व मूर्द्धन्या से वेदशिरा के जन्म का कथन), विष्णु १.१०.४(नियति व विधाता - पुत्र, मार्कण्डेय - पिता), स्कन्द ४.२.८४.४९(मृकण्ड तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२१(मार्कण्डेय - पिता), ७.१.३६०(मृकण्डु लिङ्ग का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग ऋषि की भार्या सुवृता से मृकण्डु की उत्पत्ति, मृकण्डु के नाम का कारण, मृकण्डु द्वारा शिव के वरदान से अल्पायु पुत्र मार्कण्डेय की प्राप्ति ), द्र. वंश भृगु mrikandu
मृग कूर्म १.३२(कपर्दीश्वर
लिङ्ग की सन्निधि में मृत्यु पर मृगी द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति),
गरुड १.१०९.५४(राज्य
से भ्रष्ट के लिए मृगया का विधान),
देवीभागवत ८.१५.८(नक्षत्र वीथियों
में से एक),
नारद १.४८.१८(मृग
शावक के संग से राजा भरत द्वारा तीन जन्म ग्रहण की कथा),
१.५१.५४(मृगी
: होम में अङ्गुलियों की एक मुद्रा),
पद्म
३.२६.९६(मृगधूम
तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य),
६.१३३.१९(यमुना
में तीर्थ का मृग नाम),
ब्रह्म २.३२.५(ब्रह्मा
की स्वसुता के प्रति विकृत बुद्धि,
भयभीत
सुता द्वारा मृगी रूप धारण,
ब्रह्मा द्वारा मृग रूप धारण करने पर शिव का मृगव्याध बनकर
धर्म का संरक्षण),
ब्रह्माण्ड
१.२.२३.५७(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक),
२.३.७.२३(मृग नामक अप्सरा गण की
भूमि से उत्पत्ति),
२.३.३४+
(मृगी द्वारा मृग से त्रिविध भक्ति का कथन,
परशुराम
द्वारा मृगी के वचन से भावी कार्य की शिक्षा,
मृग व
मृगी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त,
कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र श्रवण से मुक्ति),
भागवत ४.२९.५३(मृग
के रूपक द्वारा पुरुष की स्थिति का वर्णन),
५.८(भरत
की मृग में आसक्ति,
मृग योनि की प्राप्ति का वृत्तान्त),
मत्स्य २५३.२५(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक),
२६८.१४(वास्तुमण्डल
के देवता मृग हेतु यावक बलि का निर्देश),
मार्कण्डेय ६५.२५/६२.२५(मृग द्वारा अनेक स्त्रियों के साथ रमण कर रहे स्वरोचि की
गर्हणा),
६६.१३/६३.१३(स्वरोचिष द्वारा मृगी का आलिङ्गन,
मृगी का दिव्य रूप प्राप्त करना),
७४/७१(राजा स्वराष्ट}
द्वारा
जल में मृगी का स्पर्श करना,
मृगी द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : सुतपा मुनि
द्वारा कन्या को मृगी बनने का शाप,
मृगी द्वारा राजा स्वराष्ट}
से समागम
कर लोल/तामस मनु को जन्म देना),
वराह ४१.१८(ब्राह्मण
पुत्रों द्वारा मृग की हत्या,
मृग बनना,
वीरधन्वा
द्वारा मृगों के
वध का प्रसंग),
वायु
५२.५३(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों
में से एक),
६९.२१४/२.८.२०८(दिग्गज,
श्वेता से उत्पत्ति,
कश्यप
संतति),
९९.१९/२.३७.१९(मृगा
: उशीनर की ५ पत्नियों में से एक,
मृग -
माता),
९९.२१/२.३७.२१(मृग
की यौधेय पुरी का उल्लेख),
विष्णुधर्मोत्तर १.२३४(हर द्वारा दक्षयज्ञ रूपी मृग का पीछा,
मृग द्वारा अभयत्व की प्राप्ति),
१.२४८.२(मृगा : कश्यप व क्रोधा की १० कन्याओं में से एक,
पुलह - पत्नी,
मृगों की
उत्पत्ति),
शिव ४.४०(मृग
वध हेतु उद्धत व्याध द्वारा अनजाने में तीन बार शिव लिङ्ग की अर्चना,
अर्चन से ज्ञान प्राप्ति),
५.३.६२(चाक्षुष मनु के पुत्र
गृत्समद का वसिष्ठ के शाप से मरुस्थल में मृग बनना,
पश्चात्
शिव भक्ति द्वारा शिव का मृगमुख नामक गण बनना),
वा.रामायण ३.४२.१५(मारीच का
सुवर्णमय मृग रूप धारण,
राम के आश्रम पर गमन,
सीता
द्वारा मृग का दर्शन),
३.४३(कपट मृग
का दर्शन कर लक्ष्मण का संदेह,
मृग लाने
हेतु सीता द्वारा राम को प्रेरित करना,
राम के
गमन का वर्णन),
३.६४.१५(मृगों
द्वारा राम को सीताहरण के संकेत देना),
४.५९.९(मृगों
को तीक्ष्ण भय होने का उल्लेख),
स्कन्द
१.१.१३.१५(चन्द्रमा के मृग वाहन का
उल्लेख),
४.१.४५.४१(
मृगाक्षी, मृगलोचना: ६४ योगिनियों में से
दो),
५.२.२८.४(वीरधन्वा
द्वारा संवर्त्त के मृग रूप धारी पांच पुत्रों को मारने आदि की कथा),
५.२.५३.४(विदूरथ
राजा द्वारा मृग के भ्रम से तापस का वध,
रौरव नरक
की प्राप्ति),
५.३.५२.१५(ऋक्षशृङ्ग
द्वारा मृग रूप धारण करने पर चित्रसेन द्वारा मृग का वध),
५.३.८३.६६(शिखण्डी
राजा की जातिस्मरा कन्या द्वारा मृग जाति में वर्तमान स्वपति के उद्धार के उपाय का
कथन),
५.३.८५.२९(कण्व
द्वारा मृग रूप धारी द्विज के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति),
५.३.१९८.७९(विन्ध्यकन्दर
तीर्थ में देवी का मृगी नाम से वास),
६.१०(चमत्कार राजा द्वारा मृगी का
वध,
मृगी के शाप से कुष्ठ रोग की प्राप्ति),
६.२३.५(मृग
तीर्थ का माहात्म्य : सरोवर में स्नान से मृगों को मानुषत्व की प्राप्ति,
लुब्धकों द्वारा सौन्दर्य प्राप्ति,
त्रिशङ्कु की चाण्डालत्व से मुक्ति),
६.२९(देवरात
मुनि के जल में स्खलित वीर्य का सारङ्गी/मृगी द्वारा पान,
सारङ्गी द्वारा मानुषी कन्या का जन्म,
देवरात द्वारा मृगावती नामक उस कन्या को वत्स ऋषि को प्रदान
करने का वृत्तान्त),
७.३.२९.४(सुप्रभ
राजा द्वारा शिशु को स्तनपान कराने वाली मृगी का वध,
मृगी
द्वारा राजा को रौद्रव्याघ्र
होने का शाप),
हरिवंश
१.२१.२४(राजा ब्रह्मदत्त आदि के पूर्व जन्म में मृग होने का वृत्तान्त),
महाभारत
आदि ११३(जिततन्द्री
होने के पश्चात् पाण्डु द्वारा वन में मृगया आरम्भ का उल्लेख, किंदम मुनि वध
प्रसंग),
कर्ण ८७.४५(कर्ण
- अर्जुन युद्ध में विभिन्न मृगों द्वारा अर्जुन की विजय की कामना),
शान्ति १२५+
(आशा की व्याख्या के संदर्भ में राजा सुमित्र द्वारा नष्ट मृग की खोज में भग्नाशा
होने का आख्यान),
२७२(मृग
द्वारा यज्ञ में रत ब्राह्मण को स्वबलि के लिए प्रलोभन देना,
ब्राह्मण की अस्वीकृति पर मृग का धर्म के रूप में प्रकट
होना),
अनुशासन ८४.४७(मृगों
के नागों का अंश होने का उल्लेख),
११५(अगस्त्य द्वारा सभी आरण्यक
मृगों को मृगया हेतु प्रोक्षित करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.४४.३२(मनोमृग के संसार में विचरण और दुःख
प्राप्ति का वर्णन),
६.२.१२९(विपश्चित्
को मृगता प्राप्ति का वृत्तान्त),
लक्ष्मीनारायण १.३८०(पतिव्रता माहात्म्य के अन्तर्गत ब्रह्मा - पुत्री हरिणी का
वेदसूरि विप्र के साथ विवाह,
दम्पत्ति द्वारा काम विहार हेतु मृग - मृगी रूप धारण,
मृत्यु - पश्चात् मृग व मृगी बनना,
पतिव्रता मृगी के प्रभाव से वन का हरित होना,
दावानल का शान्त होना व हिंसक प्राणियों के विनाशार्थ शरभ
रूप शिव का आगमन,
परशुराम की शरण से मृग व मृगी की मुक्ति),
३.२१९.५(व्याध द्वारा मृग रूप धारी पौतिमाष्य ऋषि व उनकी
पत्नी के वध का यत्न,
ऋषि के प्रबोधन से व्याध की मुक्ति),
१.५४४.२(राजा वीरधन्वा द्वारा संवर्त्त ऋषि के मृग रूप धारी
५० पुत्रों की हत्या,
प्रायश्चित्त रूप में तप व यज्ञ,
यज्ञ में मृग रूप धारी कृष्ण व लोमश का प्राकट्य तथा राजा की
ब्रह्महत्या से मुक्ति),
कथासरित् ४.१.२३(राजा पाण्डु द्वारा मृग रूप धारी किन्दम
मुनि का वध,
शाप प्राप्ति),
१२.५.३७८(आतिथ्य सत्कार हेतु
बोधिसत्त्व विनीतमति का मृग रूप धारण कर मृत होना,
अतिथियों
द्वारा मृग मांस भक्षण से क्षुधा तृप्ति),
१८.२.२३५(स्व पुत्र जयन्त की क्रीडा
हेतु इन्द्र द्वारा स्वर्ण रत्न से मृग शिशु का निर्माण तथा अमृत सिंचन से जीवन दान,
पश्चात् मेघनाद द्वारा स्वर्णमृग को लङ्का ले जाना ),
द्र. कृष्णमृग
mriga
मृगाजिन वामन
८९.४५(कुम्भयोनि द्वारा वामन को मृगाजिन प्रदान का उल्लेख )
मृगया ब्रह्माण्ड
२.३.५६.३(सगर - पुत्रों द्वारा यज्ञीय अश्व की मृगया/खोज का उल्लेख),
मत्स्य १९९.३(मारीच कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक
), कथासरित्
९.४(नरवाहनदत्त द्वारा मृगया के
अन्त में चार दिव्य पुरुषों रूपसिद्धि, प्रमाणसिद्धि, ज्ञानसिद्धि व देवसिद्धि का
दर्शन आदि),
mrigayaa |