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18 Feb 2009

अपेक्षा

अपने इस जीवन-यापन में

कहीं ऎसा कुछ कर जाना है

जग याद रखे इस दुनिया में

एक ऎसा भी है इंसान हुआ

जिसे मोह जाल ना बांध सका

कर्मॊं और विचारॊं का

वह एक अनूठा संगम था

जग से मांगा ना कुछ भी कभी

देने को सब कुछ आतुर था

 

भाषा रंग और धर्म जाति के

बंधन कब के था काट चुका

मानव से मान को जोड़ रहा

नही शांति दूत था वह कॊई

और ना ही कोई मसीहा था

कहता था इतना ही जग से

ना पानी ने हमें जब बांटा है

ना भूख हमें है बांट सकी

ना किया हवा ने बंटवारा

फिर क्यों कर हम विद्रोह करें

हम अभय बने बस प्रेम करें

अमृत सी हमारी हॊ वाणी

कर्णों को प्रिय हम मधुर बनें

- अभय शर्मा

 सन 1973 में केन्द्रीय विद्यालय पोर्ट ब्लेयर के नवीं कक्षा के छात्र के रुप में प्रथम कविता तुलसी महिमा लिखी जिसे संगठन की हिन्दी पत्रिका में सम्मिलित किया गया था, तदनंतर 1986 में दुबारा कविता लिखने का सिलसिला शुरु किया. अब तक 25 से अधिक कवितायें लिखी हैं अपनी रचनाओं को अपनी व्यक्तिगत बैब्साइट पर ही प्रकाशित करता हूँ ।

प्रमुख रचनायें

 

 समय
मन मेरा

अपेक्षा

शांति क्रांति

आजादी की कहानी

नई सुबह के नये उजाले

वीरों की भांति
हिन्दी का आविष्कार
रच दो अब नई मधुशाला
अमृत के नाम