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18 Feb 2009

नेत्रदान .

मेरे अंगोंसे अंग काटकर

कॊई जीवन पार लगा देना

मरने के बाद मेरे हमदम

जग का कल्याण करा देना

 

कॊई नेत्रहीन पा नेत्र मेरे

जब इस दुनिया को देखेगा

मेरे जाने के बाद मेरा

जीवन सार्थक हो जायेगा

 

पुलकित होकर उसका मन

जब भावनाऒं को समझेगा

मेरी आंखें जग में होगीं

एक पुनर्जन्म हो जायेगा

 

यह परोपकार नही मेरा

समझो इसको मेरा सपना

मैं धन्य नही मैं पुण्य नही

सब जग का है यह जग अपना

 

इतना ही जतन बस कर लेना

ये नेत्र दान तुम कर देना

एक छोटी सी है विनती मेरी

आंखों कॊ अमृत दे देना

 

अभय शर्मा, 16 अप्रैल 08

 सन 1973 में केन्द्रीय विद्यालय पोर्ट ब्लेयर के नवीं कक्षा के छात्र के रुप में प्रथम कविता तुलसी महिमा लिखी जिसे संगठन की हिन्दी पत्रिका में सम्मिलित किया गया था, तदनंतर 1986 में दुबारा कविता लिखने का सिलसिला शुरु किया. अब तक 25 से अधिक कवितायें लिखी हैं अपनी रचनाओं को अपनी व्यक्तिगत बैब्साइट पर ही प्रकाशित करता हूँ ।