Site hosted by Angelfire.com: Build your free website today!

 

माँ तो आखिर माँ होती है
(श्री अमिताभ बच्चन को सहानुभूति स्वरूप)

माँ तो आखिर माँ होती है

मेरी या तेरी या फिर किसी और की

कैसे माँ से भिन्न भला माँ हो सकती है

सोलह आने सच है - माँ तो आखिर माँ होती है

 

जन्म-काल से पहले के उन नौ मासों में

बंधन माँ से जुडे हमारे कई बरसों के

काटे नही कटते, नही टूटते किसी तरह से

कहता है दिल - माँ तो आखिर माँ होती है

 

माँ, तुम राजाओं की माँ

तुम पीर-फ़कीरों की भी माँ 

कैसे चलता जग बिन माँ के

कुछ झूठ नही कि - माँ तो आखिर माँ होती है

 

माँ, आज तुम्हारे जाने की बेला आई

मन विह्वल है, भावुक है मेरा विचलित है

कल किसे कहूंगा जाकर माँ सपने अपने 

यह मान लिया कि - माँ तो आखिर माँ होती है

 

दुख-संकट में, बचपन में, जीवन के यौवन पर

वह एक  सहारा सदा तुम्हारा क्या कम था

भीषण दुख की अग्नि में अब जलता है मन

छूट गया है साथ कि - माँ तो आखिर माँ होती है

 

अब कौन सुनेगा जग में वह मेरे सपने

तुम कहां चली माँ छॊड हमें हम थे अपने

कहीं  दिया बुझ गया कोई तुम्हारे जाने से

अंधकार में डूबा मन कि - माँ तो आखिर माँ होती है ।

 

- अभय शर्मा

 सन 1973 में केन्द्रीय विद्यालय पोर्ट ब्लेयर के नवीं कक्षा के छात्र के रुप में प्रथम कविता तुलसी महिमा लिखी जिसे संगठन की हिन्दी पत्रिका में सम्मिलित किया गया था, तदनंतर 1986 में दुबारा कविता लिखने का सिलसिला शुरु किया. अब तक 25 से अधिक कवितायें लिखी हैं अपनी रचनाओं को अपनी व्यक्तिगत बैब्साइट पर ही प्रकाशित करता हूँ ।

Promote Peace, Harmony & Brotherhood!